मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012
गुरुवार, 20 जनवरी 2011
रविवार, 22 जुलाई 2007
भ्रांतिमान और अन्योक्ति कवि गुरू सक्सेना (सांड नर्सिंघ्पुरी )की कवितायेँ
भ्रान्तिमान
पराग का लोभी भौंरा
गुलाब का फूल समझ कर
एक सुंदरी के अधर पर बैठा
दोनो में ऐसी भ्रांति छा गयी
सुंदरी भौंरे को
जामुन समझ कर खा गयी ।
अन्यौक्ती
एक ग़ैर सरकारी कुत्ते ने
अत्यंत दयनीय होकर
एक सरकारी कुत्ते से
कहा
हुजूर ........
मुझे भी दुम हिलाने के
नियम बताओ
सरकारी कुत्ता गुर्रा कर
बोला
पहले चाय पिलाओ ।
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